“अरे सुनो , बहुरानी ! बाथरूम में मेरे कपड़े पड़े हैं ज़रा धो कर डाल दो “ ,कहती हुई मम्मी जी नहाकर निकली और कमरे में चली गई।
“जी “, कहकर मैं जल्दी जल्दी पराँठे बनाने में लग गई ।
सुबह का समय मेरे लिए बड़ा जानलेवा होता है चाहे जितना जल्दी उठो फिर भी देर हो ही जाती है।
उठते ही सबसे पहले मनु की दूध की बोतल बनाकर फिर बाथरूम में घुसती हूँ , नहाकर निकलते ही सीधे किचेन में एक तरफ़ सबकी चाय चढ़ाकर दूसरी तरफ़ सब्ज़ी इसी बीच जल्दी से सबको चाय देकर मनु की सू सू पॉटी देखो फिर किचेन में नाश्ते के लिए कभी पराँठे तो कभी पूरियाँ और कभी इनकी फ़रमाइश हो जाए तो आमलेट टोस्ट दूध बनाकर रखो। इसी बीच समय निकाल कर चाय पी सको तो ठीक वरना भूल जाओ।
फिर मनु को मम्मी जी के पास लिटाकर जल्दी से साड़ी लपेटो बाल बाँधो और बैग लेकर स्कूल भागो कि देर न हो जाय, एक नज़र घड़ी पर भी रखो ।
इन सब के बीच में मनाती हूँ कि मनु न जाग जाए नहीं तो उसको सम्भालने में समय निकल जाएगा जैसा अक्सर ही होता है और मैं दौड़ते भागते स्कूल पहुँचती हूँ इस दौड़ भाग में कई बार या तो अपना टिफ़िन पैक ही नहीं करती या कई बार भूल भी जाती हूँ।
पहले पतिदेव से मदद की उम्मीद की. मदद माँगी भी तो मम्मीजी को अपने बेटे का इतना दर्द सताया कि मैंने कुछ कहना ही छोड़ दिया।मनु के लिये भी एक आया लगा दी क्यूँकि मम्मी जी के अनुसार इस उम्र में इतने छोटे बच्चे को सम्भालना उनके वश की बात नहीं। ये जानते हुए भी कि ये नौकरी करना मेरा शौक़ नहीं घर की ज़रूरत है, उन्हें कभी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा।
ख़ैर ,आज की सुबह भी वैसी ही थी बस सब कुछ निपटाते मैं मम्मी जी के कपड़े धोना भूल गई और वो बाथरूम में ही पड़े रह गये।
शाम को घर आते ही पतिदेव ने पूछा,”आज मम्मी ने तुम्हें कपड़े धोने को कहा और तुमने अनसुना कर दिया कौन सा वो रोज़ कहती हैं,इतनी उम्मीद तो वो तुमसे कर ही सकती हैं ,नहीं धोना था तो मना कर देतीं।”
मैंने सिर पकड़ लिया, “अरे हाँ कहा तो था पर मैं भागमभाग में बिलकुल भूल ही गई।”
“अब जाओ तुम्हीं देखो ,वो ग़ुस्से में लेटी हुई हैं;मैंने पूछा तो कहा सिर में दर्द है शायद आज खाना भी नहीं खाया।”
“लेकिन जब मैं आयी तो सो रहीं थीं मैंने सोचा खाना खा के सो गयीं होंगी इसलिये आया को भेजकर मैं भी मनु को लेकर कमरे में आ गयी , लगभग रोज़ ही ऐसा होता है।”
“मुझे नहीं पता, तुम जानो लेकिन पहले चाय पिलाओ”, कहकर पतिदेव बाथरूम में चले गये।
मैं चाय बनाकर मम्मीजी को बुलाने गयी तो देखा वो कमरे में नहीं थी ,बाहर झाँका तो देखा पड़ोस की मिश्रा आंटी के साथ हँस के कुछ बात कर रही थी।
मैं बुलाने के लिए गई तो कान में मम्मी जी की आवाज़ आयी, “वो सब छोड़ो पहले सुनो क्या आइडिया लगाया मैंने आज महारानी का टेस्ट ले लिया और फ़ेल भी हो गई, रिज़ल्ट भी दे दिया है अच्छा हुआ तुमने बता दिया बड़ा गाना गा रहा था न उस दिन मेरा बेटा ,”पूरा घर सम्भालती है नौकरी भी करती है और कभी कोई शिकायत नहीं ...जोरू का ग़ुलाम !”
“अब तो अक्सर ही ऐसे टेस्ट देने होंगे टीचर जी को और फ़ेल भी होना होगा देखती हूँ कब तक तारीफ़ बटोरेगी....!”
मिश्रा आंटी ने मुँह टेढ़ाकर कहा, ”बेचारी.....!”
और दोनो खिलखिलाकर हँस पड़ी. मैं सकते में खड़ी थी..!
2. नयी बेल..
“क्या हुआ है तुम्हें ..? जब से बेटे की शादी करके बहुरिया घर लाई हो चेहरे पे बारह ही बजे रहते हैं तुम्हारे..!”, शर्माइन चाची अम्माँ को छेड़ते हुए हँस दीं ।
“कुछ नही हुआ मुझे...ये सब छोड़ो तुम चाय पीओ”, अम्माँ थोड़ा झुँझलाते हुए बोलीं। “ठीक है मत बताओ, पाले रहो घुन दिमाग़ में ..! एक दिन चाट चाट कर खोखला कर देगा , मैं कब से देख रही हूँ इसीलिए पूछ लिया..!”चाची ने कुछ रूठे हुए लहजे में कहा।
“ओफ़्फ़ोह..! तुम बिना जाने तो मानोगी नही तो सुनो ,”अकेला बेटा है मेरा जबसे शादी की है मन में एक डर सा बैठ गया है कि कहीं नए रिश्तों की चकमक में पुराने रिश्ते न भुला दे, और ऐसे ही नही कह रही लड़के के लच्छन भी वैसे ही लग रहे ..आज ही देखो आफिस से जल्दी आ कर पिक्चर दिखाने ले गया है, बहू का क्या चार दिन में सर पे चढ़ जाएगी फिर मेरी ज़िंदगी तो नरक हुई समझो”, अम्माँ ने मन की सारी भड़ास निकल दी।
“ओह तो ये बात है, तुम भी पूरी पागल हो अपनी ज़िंदगी भूल गयी क्या... कैसे तुम्हारी सास ने इसी डर से अपने लड़के पर अधिकार जमाए रखने के लिए तुम्हारे साथ क्या क्या नाटक नही किया, तुमने कितना झेला और आज तुम भी वही करने चली हो..?”
“जो प्यार दुलार अपनापन तुम्हें लगता है तुम्हारी सास से तुम्हें कभी नही मिला पहले वो सब अपनी बहू को दो फिर देखना कैसे बेटा तो बेटा बहू भी तुम्हारे उसके रिश्ते को कैसे संभाल के रखेगी..!”
“जान लो प्यार और नफ़रत दोनो में ही बड़ी ताक़त है लेकिन तुम्हें वही मिलेगा जो तुम दोगी..एक नयी बेल लगाई है घर में नफ़रत से सींचोगी तो काँटे ही चुभेंगे और प्यार से सींचोगी तो ये घर संसार ही नही जीवन भी फूलों सा महक उठेगा।”
अचानक कहाँ चली गयीं... अरेऽऽऽ.... कोई तो जगाओ इन्हें ......ए मम्मी ऽऽऽ उठो न ...
घर में पैर रखते ही इन ह्रदयविदारक चीख़ों ने मेरा दिल दहला दिया अनायास आँखों से आँसू बह निकले.....लेकिन आँगन में पहुँच कर जो दृश्य देखा उसने मुझे घोर आश्चर्य में डाल दिया ...... !!
मामी के पार्थिव शरीर पर उनकी दोनो बहुएँ गिर गिर कर जो ये करुण विलाप कर रही थीं...दोनो ने ही ऐसी सीधी सरल औरत की बुढ़ापे में वो दुर्गति करी कि सभी यहाँ तक कि उनके पति भी मनाते कि उन्हें मुक्ति मिल जाये तो अच्छा...मात्र ६३ की उम्र में।
बड़ी बहू ने तो छोटी के घर में आते ही उनसे लड़ झगड़ कर कई साल पहले ही सारे रिश्ते ख़त्म कर दिए ना ख़ुद कोई बातचीत करती ना ही बच्चों को चाचा चाची और दादा दादी से बात करने देती थी।
इसी ग़म में ख़ामोशी से घुलती रहीं और एक दिन लक़वे का शिकार हो जो बिस्तर पर गिरीं तो फिर उठ न सकीं। मामा जितना हो पाता करते,बेटे आते जाते हाल पूछ लेते दवा ले आते।
बेटे बहू के ख़िलाफ़ कभी एक शब्द न कहने वाली मामी की आँखों से बहते दर्द और ग़म को मैं एक साल पहले ही देख चुकी थी। इतनी सरल हँसमुख मिलनसार सदा घर परिवार को साथ लेकर चलने वाली मामी ने अपने ही बच्चों से ख़्वाब में भी ये उम्मीद न की होगी......बस इतना ही बोली थीं ना जाने कौन ग़लती हो गयी ..बिटिया..?
ये वही औरत थी जिसको शादी के बाद से दो दो बच्चों की पैदाइश तक मामी ने हाथोहाथ रखा........ वो , पिछले चार साल से ग़म में बिस्तर पकड़ धीरे धीरे घुलती हुई औरत को खाना पानी पूछने की कौन कहे , देख कर अनदेखा करती रही।
बड़ी के रंग ढंग देख छोटी ने सोचा मैं ही क्यूँ पिसूँ एक बेटा होते ही उसके रंग भी बदल गये।किसी के पास दो घड़ी उनके पास बैठने का भी वक़्त नही था।
मकान मामा ने तिमंज़िला बनवा ही रखा था सो दोनो बहुओं ने एक एक फ़्लोर पर अपनी अपनी गृहस्थी अलग कर ली, कलह से बचने को दोनो को पतियों का मूकसमर्थन तो सदा से मिलता ही रहा था।
आपस में ना कोई व्यवहार ना कोई बातचीत और आज एक दूसरे को पकड़ पकड़ कर ऐसा रोना चीख़ना....!!!?
“क्या ये रुदाली का ही एक रूप नहीं ....?”
..नही नही ..! वो तो अपना पेट पालने को ये करती हैं लेकिन ये....?